Category: आतंकवाद

ढाका हमले के संकेत

dhaka

ढाका हमले का असर बांग्लादेश में ही सीमित नहीं रहेगा, इसका असर भारत में होना लाजिमी है। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा रमजान के पाक महीने में ढाका के राजनयिक क्षेत्र स्थित रेस्त्रां को जिस तरह निशाना बनाया गया और कुरान की आयतों के जरिये गैर मुस्लिमों की पहचान की गयी, उससे साफ है कि उनका मकसद कथित इस्लाम के नाम पर दहशत का विस्तार भारतीय उप महाद्वीप तक करना है। ढाका में हुए आतंकी हमले में जो तथ्य उजागर हुए है, वे चौंकाने वाले हैं। हमलावर में शामिल युवा संभ्रांत  घरों से थे। अच्छे स्कूलों और कॉलेजों से उनकी पढ़ाई हुई थी। अब तक ऐसी धारणा थी कि आतंकी सिर्फ़ संगठन गरीब तबको के युवक को टारगेट बनाते हैं। ज्यादातर आत्मघाती दस्तों के सदस्य गरीब घरों के ही रहे हैं। अब पढ़े-लिखे समृद्ध पृष्ठभूमि के युवाओं को आतंकी गतिविधियां आकर्षित कर रही हैं। इंटरनेट इसमें मददगार साबित हो रहा है।

फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से इस्लामिक स्टेट अमीर युवाओं तक पहुँच रहा है। ढाका के आतंकी हमले का भारतीय कनेक्शन सामने आया है। ढाका में 22 लोगों की जान लेने वाले आतंकी मुंबई के एक डॉक्टर औऱ इस्लाम का प्रचार करने वाले जाकिर नाईक के विचारों से प्रभावित थे। एक आतंकी ने सोशल साइट्स पर जाकिर नाईक का वो बयान शेयर किया था, जिसमें कहा गया था कि सब मुसलमान को आतंकी बनना चाहिए। सोशल साइटों ने आतंकी संगठनों की पहुंच दूरदराज में पढ़े-लिखे युवाओं तक कर दी है। यह पूरी दुनिया के लिए नई चुनौती है। खतरे का संकेत भी।

कैफ़े पर हमला सुनियोजित और संगठित लगता है। कट्टरपंथियों ने हमले के लिए गुलशन इलाक़े को चुना है यह राजनायिक दृष्टि से अहम इलाका है, इससे ज्यादा सुरक्षित जगह ढाका या बांग्लादेश में नहीं है सो इस हमले से जैसे वो एक संदेश देना चाहते हैं कि वह कहीं भी हमला कर सकते हैं। आतंकियों ने ढाका के पॉश एरिया में एक रेस्टोरेंट होली आर्टिजन बेकरी में धावा बोला और वहां मौजूद लोगों को बंधक बना लिया। जो लोग आतंकियों का शिकार बने उनमें लगभग सभी विदेशी थे, जिनमें से नौ इटली के, सात जापान के और एक भारतीय शामिल है। आतंकियों की बर्बरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधुनिक हथियारों से लैस होने के बावजूद आतंकियों ने एक भारतीय युवती समेत 22  विदेशियों को गला रेत कर मारा। बांग्लादेश में यह इस तरह का पहला आतंकी हमला है। दशतगर्दों ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की ताकत को कम करके न आंका जाए।

दहशतगर्दी को धर्म और मज़हब के चश्मे से देखना ठीक नहीं है। दहशतगर्दों का कोई मज़हब नहीं होता। दहशतगर्दी सिर्फ़ और सिर्फ़ दहशतगर्दी है। दिन, ईमान और इंसानियत से इनका कोई लेना-देना नहीं है। दहशतगर्द दुनिया में अस्थिरता फैलाना चाहते हैं। अपने सरपरस्तों के इशारे पर दहशतगर्दी फैलाना इनका मुख्य मकसद है। इस्लाम के नाम पर नरसंहार करने वाले मुस्लमान भले ही हो मगर वे इस्लाम के अनुयाई हो ही नहीं सकते। इनके कारनामो से एक पूरा मजहब कलंकित हो रहा है। ऐसे दहशतगर्द इंसानियत के साथ-साथ इस्लाम के भी दुश्मन हैं। पैग़म्बर मुहम्मद की शिक्षा से उनका दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है। इस्लाम धर्म किसी भी हालत में हिंसा की इजाजत नहीं देता। दहशतगर्दों द्वारा इस्लाम का असली चेहरा बिगाड़ कर उसकी ग़लत व हिंसक छवि पेश की जा रही है। निर्दोष की हत्या करना जेहाद व इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है। मज़हब के नाम पर और जिहाद की आड़ में जिस तरह इंसानियत को शर्मसार किया जा रहा है उस पर अमनपसन्द मुलमानों और इस्लाम के पैरोकारों को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।

दशतगर्दों द्वारा ख़ुद को आइएसआइएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) से जुड़े होने का दावा करने के बावजूद बांग्लादेश सरकार ने ‘जमात-उल-मुजाहिदीन’ बांग्लादेश नामक आतंकी संगठन को जिम्मेवार ठहराया है। साथ ही बताया है कि इसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ से मदद मिल रही है। ज्ञात हो कि इस्लामिक स्टेट ने अपनी मैगजीन ‘दबिक’ में भी बांग्लादेश पर हमले की धमकी दे चुका था। 2014 से जमात-उल-मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों ने भी खुद को आइएसआइएस से जोड़ लिया था। बांग्लादेश में आतंक फैलाने के अलावा इन आतंकियों ने पश्चिम बंगाल में भी बम धमाका किया था।

जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश में बीते दो दशकों से सक्रिय है और इस दौरान कई खूनी वारदातों को अंजाम दे चुका है। पिछले तीन सालों से संदिग्ध इस्लामी कट्टरपंथियों ने 40 से अधिक लोगों की हत्या की है। हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों, बुद्धिजीवियों, ईसाई दुकानदारों, सेक्युलर लेखकों और ब्लॉगरों को निशाना बनाया जा रहा है। हिंदू पुजारियों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। इस संगठन की स्थापना 1998 में ढाका क्षेत्र में स्थित पालमपुर में मौलाना अब्दुर रहमान द्वारा की गयी थी। बांग्लादेश सरकार ने स्वैच्छिक संस्थाओं पर हुए हमलों के बाद फरवरी, 2005 में इस पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन इसकी ताक़त दिन-ब-दिन बढ़ती रही। पाकिस्तान के अलावा जमात को कथित तौर पर कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, पाकिस्तान, सऊदी अरब और लीबिया से विभिन्न लोगों से आर्थिक मदद मिलती है। इस्लामिक स्टेट की तरह जमात का उद्देश्य बांग्लादेश की मौजूदा शासन-प्रणाली की जगह शरिया आधारित इसलामिक शासन स्थापित करना है।

इस्लामिक स्टेट अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी वाले देशों में बहुसंख्यकों के खिलाफ उकसाने के लिए कथित उपेक्षा का हवाला देकर इस्लाम की विवादित धारणाओं को असली इस्लाम साबित करने पर तुला है। बांग्लादेश में बंगाल खिलाफा के सरगना शेख अबू इब्राहिम अल-हनीफ ने खुलासा किया है कि आतंकी संगठन आइएस पाकिस्तान और बांग्लादेश में अपने जेहादी बेस के जरिए भारत में गोरिल्ला हमला करने की योजना बना रहा है। भारत में घुसपैठ और हमले के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश हर लिहाज़ से उपयुक्त मुल्क हैं। संगठन जमात के ज़रिए बांग्लादेश से सटे भारतीय राज्यों असम और बंगाल जैसे राज्यों में भी कुछ गतिविधियों को अंजाम भी दे चुका है।

ढाका में हुए नरसंहार के बाद भारत बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा एजेंसियां चौकस हो गईं हैं। इस बीच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIAI)ने पुराने हैदराबाद के कई इलाकों में छापेमारी करके SIS के 11 आतंकियों  को हिरासत में लिया है, जो शहर में कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों की योजना बना रहे थे। 9 ठिकानों पर हुई छापेमारी में आतंकियों के पास से 15 लाख कैश सहित कई हथियार और विस्फोटक बरामद किए गए है। भारत में आइएसआइएस से आकर्षित होने वाले संदिग्धों की संख्या बढ़ रही है। जेहादी आकर्षण में संपन्न परिवार के उच्च शिक्षित युवा शामिल हैं। नौजवानों को जेहाद और मज़हब के नाम पर भड़काया जाता है। उनके भीतर इतना ज़हर भर दिया जाता है कि वह हर वक़्त मरने-मारने को तैयार रहते हैं। बीते कुछ सालों से खुफिया एजेंसियों द्वारा देश भर से संदिग्ध लोगों की गिरफ्तारी और उनकी गतिविधियों की खबरें आती रही हैं।

आइएसआइएस नामक संगठन ने दुनिया भर में कोहराम मचा रखा है और जेहाद के नाम पर दुनिया को बदलने की कोशिश में है। वह चाहता है कि दुनिया पर केवल मुस्लिमों का ही राज हो। इस्लामिक स्टेट का मुखिया अबु बकर बगदादी ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच विवाद का फायदा उठाया। यह हर कीमत पर अपना साम्राज्य फैलाना चाहता है। आतंक का अब जो नया वैश्विक चेहरा उभर रहा है, उससे निपटने के लिए तो यह भी जरूरी है कि सभी देश अपने खुफिया एवं सुरक्षा तंत्र को चुस्त करते हुए परस्पर समन्वय भी बनायें।

✍ हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

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