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स्वामी के बिगड़े बोल

भाजपा सांसद सुब्रमण्‍यम स्‍वामी को विवाद खड़ा करना और सुर्ख़ियों में बने रहना खूब आता है। इस काम में उन्हें महारत हासिल है। कांग्रेस के ख़िलाफ़ हमलावार रहे स्‍वामी अब अपनी ही पार्टी और सरकार के लिए परेशानी का सबब गए हैं। पार्टी आलाकमाswami2न स्वामी के बयानों से नाराज है, लेकिन इस बात को लेकर पार्टी दुविधा में है कि क्या कार्रवाई करे? पहले तो पार्टी स्वामी के बयानों पर पल्ला झाड़ती रही। फिर विवाद गहराता देख पीएम मोदी को कहना पड़ा कि किसी को भी पार्टी लाइन नहीं तोड़नी चाहिए।  यह ठीक-ठीक जान पाना मुश्किल है कि इस तरह की बयानबाजी के पीछे आखिर उनकी मंशा क्या है? वह किसके इशारे या शह पर ऐसा कर रहे हैं। स्वामी की बातों में आलोचना कम व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा दिखती है। भाजपा ने जब स्वामी को पार्टी में शामिल करने का मन बनाया था तब अरुण जेटली ने खुलकर विरोध किया था। जेटली, स्वामी को राज्य सभा में भेजने के पार्टी के फैसले से भी नाखुश थे। राजनीतिक हलको में यह चर्चा है कि स्वामी एक तीर के साथ दो शिकार कर रहे हैं। एक तरफ वो वित्त मंत्री अरुण जेटली से अपना पुराना हिसाब चुका रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ उनकी नजर आरबीआई के गवर्नर पद पर है। जिसपर वह अपने किसी पसंदीदा को बैठाना चाहते हैं। चर्चा है कि स्वामी आईआईएम बैंगलुरू के प्रोफ़ेसर आर वैद्यनाथन को आरबीआई का अगला गवर्नर बनवाना चाहते हैं।

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने वित्त मंत्रालय के खिलाफ़ मोर्चा सा खोल दिया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम उनके निशाने पर हैं। स्वामी ने सुब्रमण्यन अमेरिकी फार्मा कंपनियों का एजेंट बताते हुए आरोप लगाया है कि उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में   भारत के ख़िलाफ़ काम किया है। इतना ही नहीं वित्त मंत्री जेटली ने अरविंद का बचाव किया तो स्वामी ने जेटली पर भी निशाना साधने से भी नहीं चूके। आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांत दास भी स्वामी के लपेटे में है। स्वामी का कहना है कि दास एक जमीन के सौदे में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की मदद की थी। स्‍वामी ने एक तरह से धमकी देते हुए कहा है कि उनके पास 27 ऐसे अफसरों की लिस्‍ट है जो केन्‍द्र सरकार में वरिष्‍ठ पदों पर हैं। स्वामी के लगातार हमलों के बाद ब्यूरोक्रेटस में खलबली मची हुई है।

कुछ दिनों पूर्व ही रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल न बढ़ाये जाने को लेकर स्वामी ने पीएम को लिखी थी। चिट्ठी में दावा किया था कि राजन का ग्रीन कार्ड दिखाता है कि वह मानसिक रूप से पूरी तरह भारतीय नहीं हैं और ब्याज दर कम नहीं करने के उनके फैसले से उन्होंने जान बूझ कर  अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। उनके बयानों से आहत राजन ने  कार्यकाल ख़त्म होने के बाद शिकागो यूनिवर्सिटी लौटने की घोषणा की है। आगामी चार सितंबर को राजन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। स्वामी इसे अपनी बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं।

सरकार और रिजर्व बैंक के गवर्नर के बीच दो वर्षों से तनातनी चल रही है। नीतियों को लेकर असहमति होना और व्यक्तिगत आरोप लगाना दोनों दो बातें हैं। ज्ञात हो कि रघुराम राजन ने दिल्ली के एक स्कूल से पढ़ाई की थी और फिर अमरीकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के बाद वह यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं और आजकाल अवकाश पर भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर हैं। उनकी काबिलियत और मंशा पर शक नहीं किया जा सकता है।  2013 में राजन अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में गवर्नर बने थे। तब उन्होंने गिरते रुपए और घटते विदेशी मुद्रा भंडार को संभाला। अनियंत्रित हो गई महंगाई दर पर काबू पाने में सहायक बने। रघुराम राजन की तरह ही सुब्रमण्यम भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञों में गिने जाते हैं।

वित्त मंत्रालय पर हमला के व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ज्यादा दिखाई देती है। मोदी के कैबिनेट में अगले कुछ हफ्तों में बदलाव होना है और उसमें स्वामी अपने लिए जगह चाहते हैं। इस बदलाव का आधार हाल ही में मोदी सरकार द्वारा कराये गए रेट योर गवर्नमेंट सर्वे को बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व वाली एनडीए सरकार को दो साल हो चुके हैं। इस मौके पर सरकार ने MyGov portal पर दो साल के कामकाज पर जनता से राय ली। इसमें जेटली के प्रदर्शन को खराब बताया गया है। इस सर्वे के अनुसार उनके मंत्रालय को बेहद ही कम रेटिंग मिली है। स्वामी को लगता है कि उनके जैसा अर्थशास्त्री वित्त मंत्रालय में होना चाहिए। अतीत में स्वामी ने वित्तमंत्री पद के लिए खुद को उचित बताया था।

स्वामी बीजेपी के लिए तब फायदेमंद रहे जब उन्होंने नैशनल हेरल्ड और अगुस्ट वेस्टलैंड जैसे मामलों से गांधी परिवार को घेरा। यह भाजपा की रणनीति के मुताबिक थी। बदले में उन्हें राजयसभा की सदस्यता मिली। राज्यसभा में पहुंचते ही स्वामी
ने अगस्ता वेस्टलैंड का मामला उठाकर हंगामा मचा दिया। स्वामी को अप्रैल के महीने में राज्यसभा के लिए भाजपा द्वारा नामांकित किया गया था। कहा जा रहा है कि उन्हें राज्य सभा में लाने के पीछे दो कारण थे- कांग्रेस और सोनिया गांधी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाना और राज्य सभा में वित्त मंत्री और सदन के नेता  अरुण जेटली के पर काटना।

नेशनल हेरल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत तक लाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी अपने सार्वजनिक जीवन में कई वजहों से चर्चा में रहे हैं। अपनी बेलगाम बयानबाजी के लिए अधिक जाने जाते हैं। हर वक़्त किसी न किसी पर निशाना साधते रहना उनकी आदत में शामिल है। नेहरू हों, अटल हों, सोनिया-राहुल या फिर जयललिता सभी स्वामी के निशाने पर रहे हैं। स्वामी ने 1999 में वाजपेयी सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी। इसके लिए उन्होंने सोनिया और जयललिता की मुलाक़ात भी कराई थी। हाल ही में उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल पर भी निशाना साधा था।

स्वामी बयानों की वजह से हमेशा सुर्ख़ियों में बने रहते हैं। कभी यौन शोषण के मामले में जेल में बंद आसाराम बापू का समर्थन करने,  कभी राम मंदिर निर्माण को लेकर तो कभी जेएनयू पर दिए गए टिप्पणी को लेकर। जेएनयू पर अपने विवादित बयान में स्वामी ने कहा था कि जेएनयू का नाम नेहरू के नाम पर नही नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर होना चाहिए क्योंकि नेहरू ‘थर्ड क्लास’ आदमी थे और नेताजी पढ़े-लिखे आदमी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा था कि जेनयू में नक्सली, जेहादी और एलटीटीई वाले रहते हैं। जेएनयू के छात्र ही नहीं, प्रोफेसर्स भी नक्सली हैं। उस समय स्वामी के नाम की चर्चा जेएनयू के वीसी बनाये जाने की अटकलें लगाई जा रही थी। उन्होंने एक बार सार्वजनिक मंच पर अपने विवादित बयान में कहा था कि मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे। मस्जिद को लेकर भी बयान दिया था कि मस्जिद धार्मिक स्थल नहीं होते उन्हें कभी भी गिराया जा सकता है। उनके इन बयानों पर भी काफी हंगामा मचा था।

सुब्रमण्यम स्वामी  पर भाजपा लगाम नहीं लगा सकती है। यह उसकी मज़बूरी भी है। स्वामी संघ के चेहते हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है भाजपा और सरकार दोनों की नकेल संघ के हाथों में है। इस वजह से उनको नाराज और नज़रअंदाज़ करने से पार्टी बचती है। स्वामी और मोदी की दोस्ती पुरानी है। मोदी भी कभी आरएसएस के प्रचारक हुआ करते थे। आरएसएस के भीतर एक कहावत है कि जो एक बार स्वयंसेवक बन गया,  वह हमेशा के लिए स्वयंसेवक बन जाता है।

स्‍वामी के अलावा, पार्टी के भाजपा के बड़बोले नेता जिस तरह के बयान दे रहे हैं वह पार्टी और सरकार के हित में नहीं है। चाहे वो योगी आदित्‍यनाथ का राम मंदिर पर दिया गया विवादित बयान हो या हर दूसरे दिन आग उगलने वाले सांसद साक्षी महाराज, भाजपा के पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो भड़काऊ भाषण देकर पार्टी की छवि खराब करते हैं। लेकिन स्‍वामी ने सीधे केन्‍द्र सरकार के विवेक पर चोट की है। पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा भी अपने सदस्यों को संयम बरतने की सलाह का उन पर कोई असर नहीं हो रहा। अब मोदी ने नसीहत देते हुए कहा है कि इस तरह की बयानबाजी से कभी देश का भला नहीं होगा। प्रधानमंत्री की बातों का स्वामी और बाक़ी नेताओं-सांसदों पर कितना असर होगा यह आनेवाला वक़्त ही बतायेगा।

✍ हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

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