ऋतुराज वसंत ने अपने आगमन की मुनादी कर दी है। वसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को वासंती रंग से सराबोर कर जाता है। सुबह की अलसाई सिहरन, दिन का चढ़ता ताप, मंद-मंद पवन और सुरभित वातावरण मन में उमंग जगाता है। प्रकृति की नई श्रृंगार-सज्जा के साथ ही वासंती बयार बहने लगी है। ऋतुराज के स्वागत में राजधानी के बीचोबीच स्थित राजभवन की बगिया रंगबिरंगे फूलों से गुलजार है। ऐसा लगता है कि प्रकृति के समस्त रंग राजभवन में एकाकार हो गये हैं। फूलों की खुशबू से महक उठा है पूरा परिसर। धरती पर जन्नत का छोटा-सा नजारा है यहाँ। एक बार घूम लेंगे तो मन फूलों-सा खिल उठेगा।
राजभवन परिसर 62 एकड़ में फैला है। इसमें 10 एकड़ आड्रे हाउस का शेष 52 एकड़ राजभवन का है। परिसर मे लगभग 16000 पेड़ मौजूद हैं। 38 एकड़ जमीन में उद्यान बनाया गया है। पूरा उद्यान 12 खंडों में बंटा है। इन खंडों के नाम महान विभूतियों के नाम पर रखे गये हैं। अकबर उद्यान, अशोक उद्यान, महात्मा गाँधी औषधीय उद्यान, बुद्ध उद्यान, गुरु गोबिंद सिंह वाटिका आदि। शुरुआती दौर में यहाँ जो उद्यान था, वह अब मूर्ति उद्यान है। मूर्ति उद्यान 15 हजार वर्गफीट का है। मछली तालाब, लिली तालाब और जवाहर फव्वारा भी आकर्षण के केंद्र हैं।
अकबर उद्यान : अकबर उद्यान का निर्माण 2005 में किया गया था। इस उद्यान में फूलों के राजा गुलाब का खूबसूरत कलेक्शन है। यहाँ 150 से अधिक प्रजातियों के गुलाब हैं जो यहाँ की ख़ूबसूरती को गुलाबी करते हैं। इन देशी-विदेशी गुलाबों के नाम भी दिलचस्प हैं। कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू, राजाराम मोहन राय, लाल बहादुर शास्त्री, सुगंधा, सारिका, आइसबर्ग और कालिमा गुलाब सहित कई नामों के गुलाब हैं। मृणालिनी सबसे पुराना गुलाब है। गुलाबों का यह उद्यान आपको अपनी खूबसूरती और ख़ुशबू के साथ किसी दूसरी दुनिया में ले जाएगा। लाल, पीला, सफेद, गुलाबी, बैंगनी समेत अनेक रंगों के गुलाब बेहद आकर्षक लगते हैं। यहाँ हरा गुलाब भी है । प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी प्रभावित हुईं थीं। 1984 में यहाँ ऑल इंडिया रोज प्रदर्शनी लगाई गई थी जिसमें इंदिरा गांधी पहुंची थीं।
महात्मा गांधी औषधीय उद्यान : औषधीय पौधों से भरा महात्मा गांधी उद्यान राजभवन के दक्षिण में स्थित है। जहां 29 प्रकार के औषधीय पौधे और पेड़ लगे हुए हैं। इनमें बबुई तुलसी, अश्वगंधा, चंद्रिका, अमृतांजन, चित्रक, लेमनग्रास, लवंग, बिलायती धनिया, गंध प्रसारिणी, सर्पगंधा, मशकदाना, वन प्याज, एलोवेरा, पिपरमिंट, मिंट, तेजपत्ता, सिंदुबार, अकरकरा, भेंगराज, स्टीविया, पाषाण भेद आदि शामिल हैं।
देशी-विदेशी फूलों का नजारा : राजभवन में देशी फूलों के अलावा विदेशी फूलों का भी नजारा मिलता है। मौसमी-सदाबहार फूलों के 400 से अधिक प्रजातियाँ मौजूद हैं। विदेशी फूलों की करीब 60 प्रजातियाँ हैं। यहां नेस्ट्रियम, साल्विया, डायमंड पेटिका, फ्लॉक्स, पेपर फ्लॉवर, कैलीफोर्निया पपी, वंडर्स पैराडाइज, स्वीट विलियम, ज्ञानयस, पेलेंजी,मेरी कारपेट, बिगोनिया, डॉग फ्लावर, स्वीट सुल्तान और इंगलिश डेजी जैसे विदेशी फ्लॉवर्स मौजूद हैं। वसंत ऋतु में खिलने वाले तमाम फूल यहां देखने को मिलेंगे। इनकी करीब 31 प्रजातियाँ हैं। उद्यान में पिंक मैजिक कारपेट, व्हाइट डायमंड फ्लावर, पिटुनिया, गजेनिया, डहेलिया, कैलेण्डुला, गुलदाउदी और अन्य मौसमी फूलों की छटा बिखरी हुई है। गेंदा फूल भी कई प्रकार के हैं। इन गेंदों की खूबसूरती और सुगंध सभी को आकर्षित करती है।
कई दुर्लभ प्रजाति के ‘पेड़ भी : राजभवन के विशाल उद्यान में दुर्लभ प्रजाति के कई पेड़ भी मौजूद हैं। यहाँ लगभग 300 साल पुराना साल का पेड़ है। इसके अलावा करम के दो पेड़ और चंदन के पुराने पेड़ (रक्त चंदन और श्वेत चंदन), महोगनी, सीता अशोक और कद्दू पेड़ मौजूद हैं। एक कोने में बांसों का झुरमुट है जिसमें 50 प्रकार के बांस हैं। पीला बांस ख़ास माना जाता है। रुद्राक्ष, सिंदूर और कल्पतरु के पेड़ लोगों को सबसे ज्यादा लुभाते हैं। आमतौर पर रुद्राक्ष का पेड़ पर्वतीय और पठारी इलाके में होता है। रुद्राक्ष के फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि सती के देह त्याग पर भगवान शंकर को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ। इसलिए रुद्राक्ष धारण करने वाले के सभी कष्ट शिव हर लेते हैं। राजभवन में आने वाले विशेष अतिथियों को रुद्राक्ष का माला बनाकर प्रदान किया जाता है।
सिंदूर का पेड़ : यहां सिंदूर का पेड़ भी है, जिसमे कांटे होते हैं। सिंदूर के सूखे फल के अंदर गोल-गोल सरसों के आकार का दाना एक दूसरे से जुड़ा होता है। पके फल के बीज को रगडऩे पर उंगलियां सिंदूर की तरह सुर्ख हो जाती हैं। सिंदूर के पौधे को कमीला भी कहा जाता है और इसे रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर सिंदूर के पौधे को दर्जनों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है।
कल्पतरु और बोधिवृक्ष : यहाँ दुर्लभ कल्पतरु के दो पेड़ भी हैं। धर्मग्रंथों में कल्पतरु वर्णन किया गया है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पतरु की भी उत्पत्ति हुई थी। कल्पतरु पेड़ आकार में विशालकाय होते हैं और इनकी उम्र हजारों साल होती है। कल्पतरु में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। ऐसा माना जाता है कि कल्पतरु के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है। परिसर में पांच सौ सखुआ के पेड़ हैं। साथ ही 1000 फलदार पौधे भी हैं जिसमे दो सौ पेड़ केला का हैं। यहीं पर बोधगया से लाकर बोधिवृक्ष को भी रोपा गया है । अब यह आकार ले रहा है।
आर्गेनिक किचेन गार्डन : राजभवन में एक किचेन गार्डन भी है। यहाँ तेजपत्ता, इलाइची, दालचीनी, कबाबचीनी, लौंग सहित कई अन्य मसालों को देखा जा सकता है। स्वाद के अलावा इन मसालों में औषधीय गुण भी होते हैं। शरीर की विभिन्न व्याधियों में उपयोगी ये मसाले अमृततुल्य होते हैं। सब्जियों में फूलगोभी, बंदगोभी,मूली, गाजर, बैंगन, टमाटर आदि प्रमुख हैं। राजभवन के किचन में बननेवाली सब्जियां और मसाले किचेन गार्डन में ही उगाये जाते हैं। इस उद्यान में लगे पौधों के लिए सिर्फ़ रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है। ये पूरी तरह से आर्गेनिक होते हैं।
म्यूजिकल गार्डन : यहां नौ फाउंटेन लगाए गए हैं। जिसमें म्यूजिकल फाउंटेन और बॉल फाउंटेन शामिल है। म्यूजिकल फाउंटेन में सिर्फ देशभक्ति संगीत बजाए जाते हैं। इन गानों के अलावा राष्ट्रीय गान व राष्ट्रीय गीत के धुन भी बजते है। संगीत की धुन पर पानी की थिरकन देख लोग आनंदित होते हैं।
राजभवन में बुद्ध गार्डेन नाम से एक ग्रीन हाउस है। यहां ध्यानस्थ बुद्ध हैं। 52 हजार वर्गफीट में फैला अशोक खूबसूरत लॉन का नाम है। राजभवन के पश्चिमी हिस्से में बनाये गये छोटे से चिड़ियाघर के मोर, बतख़, टर्की मुर्गी, चाइना मुर्गी बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राजभवन प्रशासन समस्त उद्यान को दुल्हन की तरह सजाता है। इन फूलों की छटा देखते ही बनती है। फूलों के साथ बॉटनिकल नेम लगाये जाते हैं जो लोगों को काफी कुछ जानने में मदद करते हैं। उद्यान की देखरेख उद्यान अधीक्षक मो सलाम के जिम्मे है। वे 1984 से यहां सेवा दे रहे हैं। उन्हें 82 मालियों का सहयोग मिलता है। राजभवन उद्यान को गुलजार होने में करीब चार महीने का वक़्त लगता है। अक्टूबर-नवंबर में पौधरोपण होता है। यहां लगे फूलों के बीज अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, थाइलैंड, हॉलैंड से मंगाए जाते हैं। इस साल जैविक खेती के तरीकों से उद्यान को सजाया गया है। समुद्र किनारे मिलने वाले सोलिग्रो घास से बने खाद का उपयोग किया गया है।
ब्रिटिश काल से ही राजभवन में उद्यान था। गुलाब बाग़ को तत्कालीन गवर्नर जाकिर हुसैन ने आयाम दिया। इसको व्यवस्थित रूप गवर्नर ए.आर. किदवई के कार्यकाल में दिया गया। पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने आम लोगों के लिए उद्यान देखने की परंपरा शुरू की थी। फरवरी, 2006 को पहली बार राजभवन आमलोगों के लिए खोला गया था। उस समय से ही राजभवन में हर दिन हजारों सैलानी पहुंचते रहे हैं। 13 वर्षों से खुल रहे उद्यान का अवलोकन लाखों लोगों ने किया है। 2014 में एक दिन में एक लाख से अधिक सैलानियों ने उद्यान का भ्रमण किया था। राजभवन में प्रवेश करने के लिए चार गेट हैं। मुख्य द्वार गेट नंबर एक कहलाता है। राजभवन उद्यान पांच फरवरी से आम लोगों के लिए खोल दिया गया है। यह 19 फरवरी तक खुला रहेगा। सुबह 11 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक यहाँ के खूबसूरत नजारों का दीदार किया जा सकता है। शनिवार और रविवार का दिन सिर्फ़ स्कूल-कॉलेजों के विद्यार्थियों के लिए है। रांची और आसपास के जिलों के लोग राजभवन पहुँच रहे है। फूल और पौधों के बीच घंटों बिता रहे हैं। साथ ही अपने कैमरे से उद्यान के मनमोक दृश्य भी कैद कर रहे हैं। राजभवन के गेट नंबर दो से प्रवेश कर प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद लिया जा सकता है।
✍ हिमकर श्याम