प्रयोगधर्मी रचनाकारों के ‘कलरव’ से गूंजा ‘साझा नभ का कोना’

कलरव
                    हाइकु शताब्दी वर्ष मनाने का निर्णय

माध्यम कोई भी अच्छा या बुरा नहीं होता। वह अच्छा या बुरा उसके उपयोग करने वालों से बनता है। अदबी दुनिया के लोगों को तब बहुत हैरत हुई जब आभासी दुनिया यानि फेसबुक पर लिखने वाले कुछ लोगों ने मिलकर हाइकु दिवस पर दो किताब एक साथ पाठकों के सामने रख दी। इस वाकिये का गवाह बना नई दिल्ली का हिंदी भवन। मौका था ग्यारहवाँ हाइकु दिवस समारोह का। हाइकु दिवस पर हिंदी भवन में साझा तानका-सेदोका संग्रह ‘कलरव’ का विमोचन किया गया। ‘कलरव’ में 15 रचनाकारों की काव्य रचनाएँ शामिल हैं। ‘कलरव’ के साथ 26 प्रतिभागियों का हाइकु संग्रह ‘साझा नभ का कोना’ का भी विमोचन हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञान की देवी माँ शारदे के सामने दीप प्रज्ज्वलित कर हुआ। सरवस्ती वंदना के बाद अतिथियों का स्वागत किया गया। दोनों पुस्तकों का लोकार्पण मुख्य अतिथि कमलेश भट्ट कमल, डॉ जगदीश व्योम द्वारा किया गया। समारोह की अध्यक्षता डॉ उनिता सच्चिदानन्द जी ने की। मंच पर वर्ण पिरामिड के खोजकर्ता सुरेश पाल वर्मा जसाला एवं सुजाता शिवेन भी उपस्थित थे।  हाइकु दिवस समारोह प्रो. सत्यभूषण वर्मा की स्मृतियों को समर्पित था। कार्यक्रम का संचालन सुश्री प्रीति दक्ष तथा मनीष मिश्रा मणि ने किया। विमोचन के बाद कवियों ने काव्य पाठ किया। इस अवसर पर डॉ जगदीश व्योम एवं कमलेश भट्ट कमल ने ‘हाइकु कैसे लिखें जायें’ पर विस्तार से बताया।

‘कलरव’ का प्रकाशन लखनऊ के OnlineGatha-The Endless ने और ‘साझा नभ का कोना’ का प्रकाशन इलाहबाद के रत्नाकर प्रकाशन ने किया है। दोनों संग्रहों के लिए ख़ास शब्दों का चयन किया गया था, रचनाकारों को उन्हीं शब्दों पर अपनी रचना लिखनी थी। जहाँ ‘कलरव’ के लिए कजरी, कलरव, कला, कलोल, कान्त, कांता, कान्ति, काम्य, क्लिन्न, कुठार, कुंठ, कुण्ड, कुन्तल, कुररी, कुहक, केलि, कुञ्ज, कोपल, कौमुदी, कौतुक और कौशेय शब्दों  का चयन किया गया था वहीं ‘साझा नभ का कोना’ के रचनाकारों को नभ, प्रार्थना, क़लम, निशीथ, चिहुंका मौन, धूप-छाँव, अँजुरी, स्वेद, उड़ान, ओस, कल्पना, कर्म, दहेज, मन पखेरू, अतिथि, माँ, दया, स्वप्न, शून्य, बीज, प्रतीक्षा, शृंगार, तृषा आदि शब्दों पर लिखना था।

इस कार्यक्रम की सबसे ख़ास बात यह रही कि इस के सभी प्रतिभागी फेसबुक के आभासी मंच से निकलकर पहली बार वास्तविकता के धरातल पर एक-दूसरे से रूबरू हुए। फेसबुक पर एक जैसी सोच रखनेवाले लोग मिले, एक समूह बनाया, संग्रह की योजना बनायी और उसे मूर्त रूप दिया। इन दोनों की किताबों में देश भर से हाइकु लिखने वाले 30 लेखकों के कृतियों को स्थान दिया गया है। एक में हाइकु तो दूसरे में तानका और सेदोका। दोनों संग्रह का स

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अथ से इति -वर्ण स्तम्भ निकलने की तैयारी

म्पादन पटना की विभा रानी श्रीवास्तव ने किया है। विभा श्रीवास्तव ने अपने सम्पादकीय अनुभव सबके साथ बाँटे। उन्होंने बताया कि अब 51 लोगों के साझा संग्रह की ‘अथ से इति – वर्ण स्तम्भ’ निकालने की योजना है, जिसकी तैयारी चल रही है। इस संग्रह में सारी रचनाएँ वर्ण पिरामिड शैली में होंगी। वर्ण पिरामिड काव्य की नव विधा है। प्रथम पंक्ति में -एक , द्वितीय में -दो , तृतीया में- तीन, चतुर्थ में -चार, पंचम में -पांच, षष्ठम में- छः, और सप्तम में -सात वर्ण होते हैं। इसमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं। अर्द्ध -वर्ण नहीं गिने जाते। यह केवल सात पंक्तियों की ही रचना है इसीलिए सूक्ष्म में अधिकतम कहना होता है। किन्ही दो पंक्तियों में तुकांत मिल जाये तो रचना और निखर जाती है।

 

फेसबुक और ट्वीटर को लेकर आम धारणा यह है कि यह टाइम पास करने, भड़ास निकालने या व्यर्थ बहसबाजी करने का एक आभासी मंच है। गौर से देखा जाए तो आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया का सच्चा प्रतिरूप है। आभासी और वास्तविक दुनिया में कोई फर्क नहीं हैं। शायद इस वजह से साहित्य से जुड़े लोग और लेखक फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय हो रहे हैं। फ़ेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉग जैसे प्लेटफॉर्म व्यक्ति को अभूतपूर्व स्वाधीनता देते हैं। किसी की कोई कविता या कहानी अगर अखबार या पत्रिका में नहीं छपती है तो वो उसे अपने ब्लॉग या फेसबुक जैसे माध्यमों पर खुद छाप सकता है और उसे आसानी से अपने पाठक समुदाय तक पहुंचा सकता है। ये तकनीक का एक सकारात्मक इस्तेमाल है। इसमें कोई दो राय नहीं कि संचार के साधनों की सहज उपलब्धता व सूचना के समान वितरण  की प्रक्रिया ने बहुत सारे लोगों को अपनी संवेदना व सोच को साझा करने का एक मंच फेसबुक और ब्लॉगिंग के माध्यम से उपलब्ध कराया है।  फेसबुक और ब्लॉगिंग को लेकर नामचीन साहित्यकारों और पत्रिकाओं को प्राय: यह शिकायत रहती है कि वहाँ गंभीरता नहीं व त्वरित प्रकाशन व आत्मालोचन, आत्म- अनुशासन की शिथिलता के कारण रचनाएँ  स्तरीय नहीं पाती हैं। ‘कलरव’ और ‘साझा नभ का कोना’ इस मिथ और शिकायत को ख़त्म करने में सफल रही हैं।

दोनो संग्रहों के रचनाकार फ़ेसबुक और हिन्दी ब्लॉग की इस आभासी दुनिया से निकले हैं। संपादक विभा रानी श्रीवास्तव का कहना है कि किताब छपवाने का इरादा मजबूत इसी वजह से हुआ था कि हम फेसबुक या ब्लॉग पर जो लिखते हैं वो आम पाठकों के पहुंच में नहीं है। भारत में काव्य की यह विधा यानि हाइकु रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लायी गयी और प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा द्वारा विस्तारित की गयी। बंगला में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने ‘जापान–यात्री’ में हाइकु की चर्चा करते हुए उदाहरण रूप में कुछ हाइकु–रचनाओं के बंगला अनुवाद भी दिए। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने सन् 1916 में पहली बार हाइकु की चर्चा की थी। उस हिसाब से 2016 हाइकु शताब्दी वर्ष है। समारोह में वर्ष 2016 को हाइकु शताब्दी वर्ष के रूप में पूरे वर्ष भर मनाने का आह्वान किया गया, जिसका सर्वसम्मति से स्वागत हुआ। शताब्दी दिवस समारोह में 100 हाइकुकारों को एक किताब में सहयोगाधार पर शामिल करने तथा विमोचन पर एकत्रित होकर इसे एक यादगार उत्सव के रूप में मनाने की योजना है। इस में जो शामिल होना चाहें, विभा रानी श्रीवास्तव से इस आईडी  vrani.shrivastava@gmail.com  पर संपर्क कर सकता है।

17 अक्षरी हाइकु लेखन की जापानी विधा है। यह विश्व की सबसे संक्षिप्त कलेवर वाली काव्य शैली है। 31 अक्षरी तानका और 38 अक्षरी सेदोका हाइकु का ही वृहद रूप है। हाइकु में जहां तीन लाइन में सत्रह शब्दों को शामिल किया जाता है, जिनकी वर्ण क्रम पाँच, सात, पाँच होती है वहीं तानका में यह क्रम पाँच, सात, पाँच, सात, सात तथा सेदोका में पाँच, सात, सात, पाँच, सात और सात के क्रम में चलता है। हाइकु हिन्दी में भी लिखे जा रहे हैं और भारतीय भाषाओं में भी। कोई हाइकु को प्रकृत्ति काव्य मानता है, तो कोई इसे नीति काव्य की संज्ञा देता है। अधिकांश ने इसे प्रतीक–काव्य के रूप में ग्रहण किया है। हाइकु शुद्ध अनुभूति की‚ सूक्ष्म आवेगों की अभिव्यक्ति की कविता है। 1959 में अज्ञेय के कविता–संग्रह ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ में हाइकु के अनुवाद भी हैं और हाइकु से प्रभावित कुछ स्वतन्त्र रचनाएँ भी।

दोनों संग्रह एकांत में बैठ पढ़ने की माँग करते हैं। कम शब्दों की बाध्यता होने के बाद भी संग्रह की रचनाएँ हमारे सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप करती हैं। इनमें प्रकृति का रंग भी है और कई तरह की बेचैनी भी। यह बेचैनी हाइकु रचने की और सार्थक कुछ कह पाने की भी है। इन कविताओं में अलग ढंग की परिपक्वता है जो आगे के लिए उम्मीद जगाती हैं।

✍ हिमकर श्याम

मेरी काव्य  रचनाओ  के लिए मुझे इस लिंक पर follow करे. धन्यवाद.

http://himkarshyam.blogspot.in/

10 thoughts on “प्रयोगधर्मी रचनाकारों के ‘कलरव’ से गूंजा ‘साझा नभ का कोना’

  1. आभार सर,

    हम सभी रचनाकार आभारी हैं , कि आपने इतनी विस्तृत समीक्षा की साथ ही आपने हमारे साथ रहकर हम सभी का उत्साहवर्धन भी किया |

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