किसका होगा बिहार, किसको मिलेगी हार?

biharबिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। कयास लगाना मुश्किल है कि कौन विजयी बनकर सामने आएगा। वोटिंग खत्म हो गई है और अब आठ तारीख का इंतज़ार है। उसी दिन यह पता चलेगा कि बिहार  में सत्ता परिवर्तन होगा या नीतीश तीसरी बार बिहार की कमान सम्भालेंगे। नतीजों से पहले अबकी बार किसका बिहार पर आंकलन शुरू हो गया है। दोनों गठबंधन अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।  बिहार विधानसभा चुनाव में पांच  चरणों का मतदान खत्म होने के बाद आए विभिन्न चैनलों के एग्जिट पोल में भी एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुक़ाबला दिख रहा है। बिहार के कुल 243 विधानसभा सीटों में बहुमत का जादुई आंकड़ा 122 सीटों का है।

चार प्रमुख चैनलों के एग्जिट पोल के अनुसार बिहार में अगली सरकार महागठबंधन की बनेगी। जबकि तीन प्रमुख चैनलों के मुताबिक़ बिहार में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है।इंडिया टीवी के एग्जिट पोल के मुताबिक बिहार में महागठबंधन की सरकार बन सकती है, हालांकि स्पष्ट बहुमत पाना मुश्किल होगा। इंडिया टीवी-सी वोटर के इस एग्जिट पोल में एनडीए 101 से 121 सीटों के बीच सिमट जाएगी। जबकि महागठबंधन को 112 से 132 के बीच सीटें मिल सकती हैं। वहीं अन्य दल 6 से 14 के बीच सीटें जीत सकते हैं। न्यूज एक्स के एग्जिट पोल की मानें तो एनडीए को अधिकतम 126 सीटें और महागठबंधन को 110 और अन्य को सात सीटें मिलेगी। जबकि एबीपी न्यूज-नीलसन के एग्जिट पोल के मुताबिक महागठबंधन 130 सीटें लाकर सरकार बनाने में सक्षम होगा, वहीं एनडीए महज 108 सीटों पर ही सिमट कर रह जाएगी। अन्य को पाँच सीट मिलने का अनुमान है। न्यूज नेशन-सीएनएक्स के एग्जिट पोल के मुताबिक महागठबंधन 120-124 सीटें ला सकता है जबकि एनडीए को 115-119 सीटें आ सकती है। इंडिया टुडे-सिसेरो के एक्सिट पोल के अनुसार एनडीए 120 सीटें, महागठबंधन को 117 और अन्य को छह सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं न्यूज 24-चाणक्या ने अपने एग्जिट पोल में एनडीए को 155 सीटें दी हैं और महागठबंधन को सिर्फ़ 83 सीट। अन्य को पाँच सीट मिल सकता है। टाइम्स नाऊ-सी वोटर की माने तो एनडीए 111, महागठबंधन को 122 और अन्य को 10 सीटें मिलेंगी।

तमाम एक्जिट पोल्स का अगर औसत देखा जाए तो राज्य में एनडीए और महागठबंधन में आर-पार की लड़ाई है। तमाम पोल्स के औसत के हिसाब से राज्य में महागठबंधन को 118 सीटें, बीजेपी को 117 तथा अन्य के खाते में आठ सीटें जाती दिख रही हैं। लोकसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनावों में चाणक्या के नतीजे सबसे सटीक रहे थे। 2010 में भाजपा और जदयू साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। तब जदयू को 115, भाजपा को 91, राजद को 22, कांग्रेस को चार और अन्य को 11 सींटे मिली थी। इस बीच नए राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बने और पुराने बिगड़ गए। तब नीतीश कुमार एनडीए में थे और अब आरजेडी और कांग्रेस के साथ हैं। जेपी आंदोलन की उपज और बिहार के दो ताक़तवर नेता लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी के साथ आने से महागठबंधन के पक्ष में पिछड़ों की गोलबंदी हुई। एनडीए से अलग होने के बाद जदयू को लोकसभा चुनाव दो सीटें मिली थी, जबकि उन्हें कुल 16.04 फीसदी वोट मिले। लालू प्रसाद की पार्टी राजद को चार सीटें मिली और वोट मिले 20.46 फीसदी। राजद और जदयू के वोटों का मिला देने से मतों का प्रतिशत 36.5 फीसदी हो जाता है जो भाजपा को प्राप्त वोटों 29.86 प्रतिशत से बहुत ज़्यादा है। इसमें कांग्रेस को मिले  8.56 फीसदी वोट को भी जोड़ दिया जाए तो यह आँकड़ा 45 फ़ीसदी तो पहुँच जाता है।

exitpollबिहार के चुनावी नतीजे कई मायने में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश-लालू-कांग्रेस के महागठबंधन के लिए बहुत कुछ दांव पर है और ये दोनों पक्षों की आगे की राजनीति तय करेगा। नरेंद्र मोदी ने बिहार के चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा दी थी। किसी विधानसभा चुनाव में किसी प्रधानमंत्री ने शायद ही इतनी रैलियां की हों। प्रधानमंत्री मोदी की पूरी कैबिनेट, भाजपा के चार दर्जन से ज्यादा सांसदों और आरएसएस के हज़ारों कार्यकर्ता बिहार के चुनावी मैदान में दिन-रात एक कर दिया था। चुनाव प्रचार से पहले ही प्रधानमंत्री ने जो चार रैलियां की थी उसमें जंगल राज और डीएनए का मुद्दा उठाकर लालू-नीतीश को घेरने की कोशिश की। डीएन वाला प्रधानमंत्री का बयान पूरे चुनाव में छाया रहा। नीतीश ने इसे बिहार के सम्मान से जोड़कर मोदी पर जवाबी हमला किया। पूरे चुनाव में लालू और नीतीश में ग़ज़ब का तालमेल दिखा। प्रचार के दौरान नीतीश कुमार विकास की बात करते दिखे तो लालू यादव जाति की।

बिहार में जातीय समीकरण जड़ों तक गहरा है। उस पर चुनावी हवाओं और लहर का कम ही असर होता है। मोदी लहर पर भरोसा होने के बावजूद चुनाव में भाजपा अकेले लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। पार्टी रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर चलने को मजबूर हो गयी। वहीं विकास पुरुष और सुशासन बाबू की छवि बरकरार रहने के बाद भी नीतीश को चुनाव में राजद और कांग्रेस से गठबंधन करना पड़ा। मुस्लिम-यादव वोटों की मजबूरी के चलते नीतीश ने जंगल राज के प्रतीक लालू यादव से हाथ मिलाया। जातीय समीकरण महागठबंधन के पक्ष में हैं। मतदान जातीय आधार पर हुए होंगे तो नतीजे निश्चित तौर पर महागठबंधन के पक्ष में आएंगे।

शुरुआत में चुनावी जंग नीतीश बनाम मोदी के बीच थी और मुद्दा विकास का लग रहा था। लेकिन बाद में नीतीश बैकसीट पर चले गए और लालू आगे आ गए। मुकाबला लालू बनाम मोदी के बीच हो गया। विकास का मुद्दा पीछे छूटता चला गया। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा भाषाई मर्यादा तार-तार होने लगी। बिहार के चुनावी समर में जातीय समीकरण की कितनी अहमियत है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि बक्सर की रैली में जहाँ नरेंद्र मोदी ने अपने आप को पिछड़ी जाति का बताकर जाति कार्ड खेलने की कोशिश की, वहीं जातीय गोलबंदी करने की नीयत से 27 सितंबर को लालू ने राघोपुर में कहा कि ये चुनाव बैकवार्ड और फॉरवार्ड के बीच है।

चुनाव के ठीक पहले जातियों के सूचीगत फेरबदल से महागठबंधन को फायदा पहुँचाया है। तेली जाति को पिछड़े से अतिपिछड़े श्रेणी में और मल्लाह, निषाद और नोनिया जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की आरक्षण पर टिप्पणी बिहार चुनाव में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के लिए वरदान साबित हो सकती है। वहीं गोमांस का मुद्दा उठाए जाने से हिंदू मतों का ध्रुवीकरण एनडीए के पक्ष में हुआ, तो मुस्लिम मतदाता महागठबंधन के पीछे लामबंद दिखे।

चुनाव के दौरान आरक्षण और अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे हमलों से हुए नुकसान की भरपाई भाजपा युवा मतदाताओं को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश करती दिखी। बिहार के चुनाव में युवा मतदाताओं की भूमिका निर्णायक हो सकती है। वे किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव हरा सकते हैं या फिर किसी दल को अपने दम पर चुनाव जिता सकते हैं। युवा वर्ग जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचता है। बिहार में युवा मतदाताओं की बात करें तो 6.6 करोड़ से अधिक मतदाताओं में कुल करीब 2 करोड़ मदताता 30 साल के नीचे के हैं। इन युवा मतदाताओं का रुझान भाजपा की ओर या यूँ कहे कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर है। यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि नए मतदाताओं का रुझान एनडीए की तरफ होता है या जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन की तरफ। चुनाव में महिलाएं बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए घरों से बाहर निकलीं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं का बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकलना महागठबंधन के पक्ष में है लेकिन बीजेपी का दावा है कि राज्य की महिलाओं ने जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर एनडीए के लिए वोट डाला है। महिला मतदाताओं की पहली पसंद नीतीश कुमार ही हैं लेकिन यह भी सच है कि वह लालू के जंगल राज अभी तक नहीं भूला पायी हैं। राज्य  में 46 फीसदी मतदाता महिलाएं हैं जिनकी भूमिका बेहद अहम होगी।  महादलित वोट बैंक का रुझान भी नतीजों को प्रभावित करेगा। दोनों गठबंधनों ने महादलित वोट अपने पक्ष में लाने की पुरजोर कोशिश की।

इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश के कार्यकाल में बिहार की छवि बदली है। विकास के कार्य दिख भी रहे है। मुख्यमंत्री के रूप में अब भी वह जनता की पहली पसंद बने हुए हैं, लालू के साथ आने से पढ़े-लिखे मतदाता जो जाति से ऊपर उठ कर चीज़ों को देखते हैं मतदाता ऊहापोह में थे। अपने सहयोगियों के कारण निश्चय ही नीतीश की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है। गठबंधन साझेदारों के बीच के विरोधाभास को देखते हुए कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। शायद इसी वजह से भाजपा चुनाव प्रचार में सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री से उनके 10 साल के काम का हिसाब मांगने से ज्यादा उनके साथी लालू प्रसाद यादव के जंगलराज की वापसी का डर दिखाने पर जोर दे रही थी। साथ ही यह भी याद दिलाती रही कि नीतीश सरकार की उपलब्धियां सिर्फ नीतीश कुमार की नहीं हैं, बल्कि 10 साल के उनके राज में सात साल पार्टी उनके साथ थी।

बिहार में चुनाव परिणामों पर किसी तरह की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल काम है। यहां जाति, धर्म, अगड़ा-पिछड़ा, दलित, विकास ये सभी मुद्दे वोट को प्रभावित करनेवाले होते हैं। कोई भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता। दोनों प्रमुख गठबंधन अच्छी तरह से जानते हैं कि बिहार में केवल विकास के मुद्दे पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। जातिगत वोटों का ध्रुवीकरण यहाँ के चुनावी नतीजों को प्रभावित करता रहा है। एनडीए और महागठबंधन ने अपनी लड़ाई उसी अनुरूप लड़ी। विकास के वायदों के साथ-साथ जातीय समीकरण बिठाने का पूरा प्रयास किया। चुनाव ख़त्म हुए, अब पूरे देश को नतीजों का इंतज़ार है। बिहार चुनाव के परिणाम सिर्फ़ लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राजनीतिक भाग्य का ही फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि यह परिणाम भारत के भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे।

✍ हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

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2 thoughts on “किसका होगा बिहार, किसको मिलेगी हार?

  1. हम बचपन में खेलते थे तो तेलिया के तीन चांस करते थे
    मुझे लगता है एक और मौका मिलना चाहिए नितीश जी को
    सार्थक लेखन

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  2. बहुत ही अच्‍छा विश्‍लेषण किया है आपने। टीवी चैनल जो चाहे कहें। पर आम जनता मन को समझ पाना उनके बस के बाहर है।

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